खट्टर ककाक तरंग – दही चूडा चीनी
लेखक : हरिमोहन झा
खट्टर कका दलान पर बैसल भाङ्ग घोटैत छलाह । हमरा अबैत देखि बजलाह – हॅं!- हॅं;….ओम्हर मरचाइ रोपल छैक, घूमि कऽ आबह।
हम कहलिएन्ह – खट्टर कका, आइ जयवारी छैक, सैह सूचित करय आयल छी
खट्टर कका पुलकित होइत बजलाह – वाह वाह ; तखन सोझे चलि आबह। दू एकटा धङ्गेवे करतैक त की हेतैक? …..हॅं, भोज मे हेतैक की सभ?
हम – दही चूडा चीनी ।
खट्टर – बस, बस, बस। सृष्टि में सभ सॅं उत्कृष्ट पदार्थ यैह थीक। गो स में सभ सॅं मांगलिक वस्तु दही – अन्न में सभक चूडामणि चूडा – मधुर में सभक मूल चीनी। एहि तीनूक संयोग बूझह तॅं त्रिवेणी-संगम थीक।हमरा त त्रिलोक क आनन्द एहि मे बूझि पडैत अछि। चूडा भूलोक । दही भुअर्लोक, चीनी स्वर्लोक।
हम देखल जे खट्टर कका एखन तरंग में छथि। सभटा अद्भुते बजताह । अतएव काज अछैतो गप्प सुनबाक लोभे बैसि गेलहु।
खट्टर कका बजलाह – हम त बुझैछी एही भोजन सॅं सांख्य दर्शन क उत्पति भेल अछि।हम चकित होइत पुछलियैन्ह – ऎं, दही चूडा चीनी सॅं सांख्य दर्शन।से कोना?
खट्टर कका बजलाह – एखन कोनो हडबडी त नै छौह ? तखन बैसि जाह। हमर विश्वास अछि जे कपिल मुनि दही चूडा चीनी क अनुभव पर तीनू गुण क वर्णन क गेल छथि। दही सत्वगुण। चूडा तमोगुण। चीनी रजोगुण।
हम कहलियैन्ह – खट्टर कका, अहाँक त सभटा कथा अदभुते होइत अछि। इ हम कतहु नहि सुनने छलहुं ।
खट्टर कका बजलाह – हमर कोन बात एहन होइत अछि जे तों आनठाम सुनि सकबह ?हम – खट्टर कका, त्रिगुण क अर्थ दही चूडा चीनी, से कोना बहार केलियैक?
खट्टर कका – देखह, असल सत्व दहिए में रहैत छैक, तैं एकर नाम सत्व। चीनी गर्दा होइछ, तैं रज। चूडा रुक्षतम होइछ, तै तम । देखै छह नहि, अपना देश में एखन धरि ‘तमहा’ चूडा शब्द प्रचलित अछि।
हम – आश्चर्य। एहि दिस हमर ध्यान नहि गेल छल।
खट्टर कका व्याख्या करैत बजलाह – देखह, तम क अर्थ छैक अन्धकार। तैं छुच्छ चूडा पात पर रहने आंखिक आगां अन्हार भऽ जाइ छैक। जखन उज्जर दही ओहि पर परि छैक तखन प्रकाश क उदय होइ छैक। तैं सत्व गुन कैं प्रकाशक कहल गेल अछि। “सत्वं लघु प्रकाशकमिष्टम” । तैं दही लघुपाकी तथा सभ कैं इष्ट [प्रियगर] होइत अछि। चूडा कोष्ट कैं बान्हि दैत छैक । तैं तम कैं अवरोधक कहल गेल छैक । और विना रजोगुणें त क्रियाक प्रवर्तन हो नहि। तैं चीनीक योग वेत्रेक खाली चूडा दही नहि घोटा सकैत छैक । आब बुझलहक ?
हम कहलिऎन्ह – धन्य छी खट्टर कका। अहॅं। जे न सिद्ध कऽ दी ।
खट्टर कका बजलाह – देखह सांख्यक मत सॅं प्रथम विकार होइत छैक महत् वा बुद्धि। दही चूडा चीनी खैला उत्तर पेट में फूलि कय पसरैत छैक । यैह महत अवस्था थिकैक। एहि अवस्था में गप्प खूब फुरैत छैक। तैं महत कहु वा बुद्धि – बात एक्के थीक । परन्तु एकरा हेतु सत्वगुणक आधिक्य होमक चाही अर्थात दही बेशी होमक चाही।
हम – अहा। सांख्य दर्शन क एहन तत्व दोसर के कहि सकैत अछि ।
खट्टर कका बजलाह – यदि एहिना निमन्त्रण दैत रहह त क्रमशः सभ दर्शन क तत्व बुझा देबौह। त्रिगुणात्मिका प्रकृति द्रष्टा पुरुष कै रिझबैत छथि । एकर अर्थ जे ई त्रिगुणात्मक भोजन भोक्ता पुरुष कैं नचबैत छथि। तैं – “नृत्यन्ति भोजनैर्विप्राः” ।
हम कहलिएन्ह – परन्तु खट्टर कका, पछिमाहा सभ त दही चूडा चीनी पर हॅंसैत छथि ।
खट्टर कका अङ्पोछा सॅं भाङ्ग छनैत बजलाह – हौ, सातु लिट्टी खैनिहार दधि-चिपटान्न क सौरभ की बुझताह । पश्चिम क जेहन माटि बज्जर, तेहने अन्न बजरा, तेहने लोको बज्र सन। अपना देशक भूमि सरस,भोजन सरस, लोको सरस ; चूडा पृथ्वी तत्व। दही जल तत्व। चीनी अग्नि तत्व । तैं कफ पित्त बायु- तीनू दोष के शमन करबाक सामर्थ्य एहि मे छैक। देखह, अनादि काल सॅं दही चूडा चीनी क सेवन करैत-करैत हमरा लोकनि क शोनित ठंढा भऽ गेल अछि । तैं मैथिल जाति कैं आइ धरि कहियो युद्ध करैत देखलहक अछि ।
हम – खट्टर कका कहां सॅं कहां शह चला देलहु। बीच-बीच में तेहन मार्मिक व्यंग्य कऽ दैत छियैक जे
ख० – व्यंग्य नहि यथार्थे कहैत छियौह । देखह भोजने सॅं प्रकृति बनैत छैक । चाली माटि खा कऽ माटि भेल रहैत अछि। सॅं।प बसात पीबि कऽ फनकैत अछि । साहेब सभ डबल रोटी खा कऽ फूलल रहैत अछि। मुर्गा खैनिहार मुर्गा जकां लडैत अछि। और हम सभ साग-भाटा खा कऽ साग- भाटा भेल छी। हमरा लोकनि भक्त [भात] क प्रेमी थिकहु, तैं एक दोसरा सॅं विभक्त रहैत छी। ताहु पर की त द्विदल [दालि] क योग भेले ताकय। तखन एक दल भऽ कऽ कोना रहि सकैत छी?
हम – अहा। की अलंकारक छ्टा ।
ख०- केवल अलंकारे नहि, विज्ञानो छैक।कोनो जातिक स्वभाव बुझबाक हो त देखी जे ओकर सभ सॅं प्रिय भोजन की थिकैक ? देखह बंगाली ओ पच्छांही क स्वभाव मे की अन्तर छैक ? जैह भेद रसगुल्ला ओ लड्डू में छैक। रसगुल्ला सरस ओ कोमल होइछ, लड्डू शुष्क ओ कठोर। रसगुल्ला पुर्व क प्रतीक थीक, लड्डू पश्चिम क । तैं हम कहैत छिऔह जे ककरो जातीय चरित्र बुझबाक हो त ओकर प्रधान मधुर देखी।
हम – खट्टर कका अपना सभक प्रधान मधुर की थीक ?
ख० – अपना सभक प्रधान मधुर थिक खाजा। देहात में मिठाई कहने ओकरे बोध होइछ। खाजा ने रसगुल्ला जका स्निग्ध होइछ, ने लड्डु जेकां ठोस।तै हमरा लोकनि मे ने बंगालीबला स्नेह अछि, ने पंजाबीबला दृढता । तखन खाजा में प्रत्येक परत फरक-फराक रहैत छैक, से अपनो सभ में रहितहि अछि।
हम- बाह ई त चमत्कार क गप्प कहल। मौलिक।
ख० – ऎंठ वा बासि बात हम बजितहिं ने छी।
हम – वास्तव में खट्टर कका। अहॅं। ठीक कहै छी । गाम-गाम में गोलेसी, घर-घर में पट्टीदारी झगरा। कचहरी में पागे पाग देखाइतअछि। से कियेक? ख०- एकर कारण जे हमरा लोकनि जे आमिल मरचाइ बेसी खाइत छी। तीख चोख भेले ताकय। तीतो में कम रुचि नहि। नीम भाटा, करैल, पटुआक झोर हौ, जैह गुन कारण में रहतैक सैह ने कार्य में प्रकट हैतैक। कटुता, अम्लता ओ तिक्तता हमरा लोकनिक अंग बनि गेल अछि। स्वाइत हम सभ अपना मे एतेक कटाझ करैत छी।
हम- परन्तु बंगालि में एतेक प्रेम कियेक?
खट्टर कका भाङ्ग मे एक आंजुर चीनी मिल्बैत बजलाह- ओ अभ प्रत्येक वस्तु मे मधुर के योग दैत छैथि। दालियो मीठ, माछो मीठ, चटनियो मीठ तखन कोना ने माधुर्य रहतैन्ह? अपनो जाति में एहिना मीठ क व्यवहार होमऽ लागय तखन ने। तैं हम कहैत छियौह जे अपना जाति में जौं संगठन करबाक हो त मधुर के बेसी प्रचार करह। केबल सभा कैने की हैतोह ? -’भोज ने भात ने, हरहर गीत।’ गाम सॅं दुगोला दूर करबाक हो त ‘दही चूडा चीनी लवण, कदली लाडु बरफी’ क भोज करह।
इ कहि खट्टर कका भाँगक लोटा उठौलन्हि और दू-चारि बून्द शिवजी क नाम पर छीटि घट्टघट्ट कय सभटा पीबि गेलाह ।